एक्टर बनने के लिए कितनी उम्र होनी चाहिए
एक्टर बनने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती यह कहना है बॉबी देओल की फिल्म आश्रम 3 में छोटेलाल भुईया का किरदार निभाने वाले अभिनेता नीरज सिंह राजपूत ने बॉलीवुड यात्रा से खास बातचीत की और उन्होंने कहा कि किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति एक्टिंग करने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में आ सकता है और अपना कैरियर फिल्म इंडस्ट्री में बन सकता है जब एक फिल्म बनाई जाती है तो उसमें तरह-तरह के किरदार मौजूद होते हैं और उन किरदारों की अलग-अलग उम्र होती है ऐसे में हर उम्र का किरदार की आवश्यकता होती है और सभी उम्र के लोगों को कम मिलता है एक महीने के पैदा हुआ बच्चे को भी कम मिलता है फिल्म इंडस्ट्री बहुत विशाल है इसमें कोई उम्र सीमा नहीं देखी जाती उम्र देखी जाती है तो बस किरदार की डिमांड के हिसाब से देखी जाती हैं कि किस फिल्म या टीवी सीरियल में किस उम्र का किरदार है जिस उम्र का किरदार होगा उसे उम्र के एक्टर की आवश्यकता होगी इसलिए सभी उम्र के लोग फिल्म इंडस्ट्री में अपना फ़िल्मी करियर स्टार्ट कर सकते हैं और बना भी सकते हैं।
सवाल – एक्टर बनने के लिए कितनी उम्र होनी चाहिए
जबाब -अभिनेता नीरज सिंह राजपूत कहते हैं कि बस आपको एक्टिंग आनी चाहिए वैसे तो एक्टिंग कोई सीख नहीं सकता यदि आपको एक्टिंग आती है आपके भीतर वह कल है तो आपको उसको पॉलिश करने की आवश्यकता है जिसके लिए आप किसी भी नाटक कंपनी या थिएटर को ज्वाइन कर सकते हैं या किसी एक्टिंग क्लासेस को ज्वाइन कर सकते हैं इससे आपके भीतर का वह अभिनेता बाहर आ सकता है और आपकी कला में निखार आ जाएगा फिर आप ऑडिशन देना शुरू करें हर उम्र को काम है और बहुत सारा काम है इतना काम है कि आपको समय ना मिलेगा काम करने का आपको बहुत सारे लोगों को तो मना करना पड़ जा सकता है क्योंकि आप कहीं और काम कर रहे होते हैं एक ही दिन में एक ही समय पर आप दो-चार जगह काम नहीं कर सकते इसलिए आपको बहुत सारी जगह काम करने के लिए मना भी करना पड़ सकता है एक एक्टर के पास बहुत सारा काम आता है फिल्म इंडस्ट्री में। इसलिए बिना किसी झिझक के शुरुआत करें और आगे बढ़े ।
अभिनेता नीरज सिंह राजपूत निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा की वेबसीरीज फिल्म आश्रम 3 में नजर आए उन्होंने इस फिल्म में छोटे लाल भुईयां का किरदार निभाया। इस फिल्म में नीरज का किरदार बहुत पसंद किया गया। कहते हैं सपने कांटों पर चलकर ही पूरे होते हैं नीरज सिंह राजपूत का जबलपुर से मुंबई तक का सफर कुछ ऐसा ही था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी मशहूर अभिनेता नीरज सिंह राजपूत से हमने खास बातचीत की तों आइये पेश है उनसे जुड़ी खास बातचीत।
सवाल -आश्रम 3 में आपने बेहतरीन अदाकारी की है आपने इस फिल्म में नकारात्मक किरदार प्ले किया है तों क्या आपको आपकों नकारात्मक भूमिका आकर्षित करती है?
जबाब -हां मुझे नकारात्मक किरदार पसंद है दरअसल नकारात्मक भूमिका में खेलने का मौका मिलता है लेकिन सकारात्मक भूमिका में खेलने का मौका नहीं मिलता है वह सीधे-सीधे चलता है किरदार लेकिन नकारात्मक में वेरिएशन बहुत सारे मिलते हैं।
सवाल -बाबी देओल के साथ आपने काम किया एकता कपूर, मिथुन चक्रवर्ती जैसे कलाकार के साथ आपने काम किया उनके साथ कैसा अनुभव रहा आपका?
जबाब – बॉबी देओल सर बहुत अच्छे इंसान हैं बहुत ही सपोर्ट करने वाले हैं उन्होंने काफी कॉर्पोरेट किया मेरे साथ इस कैरेक्टर को प्ले करने में, उनके साथ काम करने का बहुत अच्छा अनुभव है मेरा। बालाजी टेली फिल्म्स से करियर शुरूआत में मैं काम मांगने गया तों बाहर से ही निराश हो कर लौटा लेकिन मेरे लिए यह आश्चर्य की बात है कि उसी बालाजी टेलीफिल्म्स के निर्माता एकता कपूर जी पांच टीवी सीरियल में मुझे काम करने का मौका मिला। मिथुन चक्रवर्ती सर फ्रेंडली था ऐसा लगा ही नहीं वह इतने बड़े सुपरस्टार हैं उनका वर्ताव सामान्य और हेल्पफुल था।
आप अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बताइए कैसे आप फिल्मों में आ गए और किस तरह से आपकी जर्नी शुरू हुई। आपका फिल्मी सफर कहां से शुरू हुआ?
जबाब -बचपन से ही मुझे फिल्में देखने का मुझे बहुत शौक था तो टीवी जब हम देखते थे तो मुंबई का दृश्य उसमें देखने को मिलता था और इन दृश्यों को देखकर मुझे एक अपनापन महसूस हुआ जैसे कोई मेरा कुछ पुराना गहरा रिश्ता है मुंबई से, मुझे मुंबई अपनी सी लगती थी और टीवी देखते देखते मैंने यह तय किया कि मैं एक अभिनेता बनूंगा यह बात साल 2000 कि है मुझे किसी से पता चला कि फिल्म में अभिनय करने के लिए रंगमंच जरूरी है इस समय विवेचना रंगमंच की एक वर्कशॉप हो रही थी जबलपुर में तो मैंने वर्कशॉप जॉइन कर ली और फिर मैं इस तरह थिएटर से भी जुड़ गया फिर लगभग 3 वर्ष थिएटर किया साल 2005 में मैंने मुंबई का रुख किया। माता त्रिपुर सुंदरी से मन्नत मांगी थी कि मुझे मुंबई जाने का मौका मिल जाए क्योंकि उन दिनों मुंबई जाना घरवालों को राजी करना मेरे लिए आसान नहीं था। नवरात्र के पावन पर्व पर मैं गढ़ा से त्रिपुर सुंदरी माता के मंदिर तक दंड भरते हुए गया और एक माह के अंदर माता रानी ने मेरी अर्जी स्वीकार कर ली मैं और मेरा एक दोस्त राॅकी मुंबई पहुंचे। महज 1500 लेकर जबलपुर से मुंबई के अंधेरी स्टेशन पहुंचा। रहने के लिए ठिकाना ढूंढने लगा क्योंकि मुंबई मेरे लिए अनजान शहर था मेरा कोई वहां नहीं रहता था। रहने के लिए ठिकाना ढूंढते ढूंढते रात होने की वजह से सैंडड रोड स्थित इंडियन लॉज में 120 रुपए प्रति दिन के हिसाब से ठहरना पड़ा।फिर मेरे फ्रेंड राॅकी का जबलपुर का एक दोस्त नारायण झारिया मुंबई में रहता था उससे रहने के लिए जगह पूछीं तो उसने बोला दो दिन रूको बताता हूं फिर इस तरह जूहु स्थित यूनिटी कंपाउंड में 800 रुपए प्रतिमाह रहने का इंतजाम हुआ यह एक सिंगल बैंड की जगह थी। फिर मेरा अभिनय का संघर्ष शुरू हुआ।
मैंने अपनी फोटो 19 स्टूडियो से 50 रुपए प्रति फोटो के हिसाब से निकलवाई और सबसे पहले बालाजी टेलीफिल्म्स के आफिस पहुंचा वहां पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने मुझसे पूछा कि किसने बुलाया है मैंने उसे जवाब दिया मैं एक एक्टर हूं डायरेक्टर से मिलना चाहता हूं उसने बोला ऐसे नहीं मिल सकते उसने बोला आप अपना फोटो नाम नंबर लिखकर गेट में लगे हुए बॉक्स में डाल दें बस । मैं बहुत निराश हुआ और 5 सालों तक बालाजी फिल्म्स नहीं गया। फिर मुंबई पहुंचने के लगभग 1 वर्ष के गहन संघर्ष के बाद पहली फिल्म “साईं बाबा” मिली जिसमें क्राउड का काम था मुझे भीड़भाड़ वाला काम मिला था उससे मैं बहुत उत्साहित हुआ मुझे एक फिल्म मिल गई थी उसी समय मैंने तुरंत ही घर वालों को फोन करके बता दिया कि मैं एक फिल्म में काम कर रहा हूं जब फिल्म रिलीज हुई तो मेरा छोटा भाई अपने दोस्तों के साथ जबलपुर के प्रभु वंदना टॉकीज फिल्म देखने गया वह पूरी फिल्म में मुझे ढूंढते रहे लेकिन मैं कहीं नहीं दिखा। फिर मैंने कहा जो गुलाबी पगड़ी पहना था वह मैं ही था तो उन्होंने मान भी लिया। उन्होंने फोन पर जबाब दिया हां भैया मैंने आपको देखा था। इसके बाद मुझे डायरेक्टर वी सुभाष की फिल्म मिली जिसने मिथुन चक्रवर्ती के साथ मेरा एक सीन था इस सीन में, मैं हवलदार का किरदार निभाया था इसी फिल्म से मुझे पहचान मिली मेरा पूरा परिवार बहुत खुश हुआ। फिर डायरेक्टर दीपक बलराज दूसरी फिल्म मुंबई गॉडफादर मिली जिसमें मैं हीरो के दोस्त का किरदार निभाया था यह फिल्म अंडरवर्ल्ड की सत्य घटना पर आधारित थी।
सवाल -आपने फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की फिर आप टीवी इंडस्ट्री में कैसे आ गए इसके पीछे की क्या कहानी है?
जबाब – मुंबई गाडफादर रिलीज के बाद मुझे 1 साल तक कोई काम नहीं मिला। मेरे पैसे भी खत्म हो गए थे। मुझे घर वापस आने के लिए प्रेशर मिल रहा था क्योंकि मेरे घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। मैं थोड़ी बहुत सिंगिंग जानता था तो मैं नाइट क्लब में बर्थडे पार्टी में शादियों में गाना शुरू कर दिया दुबई और सिंगापुर में भी इवेंट ग्रुप के साथ सिंगिंग परफॉर्मेंस भी देने गया रात में सिंगिंग करता दिन में स्ट्रगल करता लगभग दो तीन इस तरह का सिलसिला जारी रहा फिर फिल्मों के बाद मैं सीरियल की ओर भी रुख कर लिया दोस्तों की मदद से कास्टिंग डायरेक्टर के नंबर मिले सबसे पहला सीरियल ” लाडो” मिला और यहां से टीवी सीरियल का सफर शुरू हो गया उतरन ,सपना से भरे नैना,सपने सुहाने लड़कपन के ,नामकरण, कुंडली भाग्य, कुमकुम भाग्य,क्राइम पेट्रोल ,सावधान इंडिया, तारक मेहता का उल्टा चश्मा में काम किया। तारक मेहता के उल्टा चश्मा की वजह से मुझे खास पहचान मिली जो लोग मेरा मजाक उड़ाया करते थे वो मेरी अब तारीफ करने लगे ।
उतार चढ़ाव और संघर्ष के बीच प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल 2 में काम करने का मौका मिला जिसमें मानव कोल की गैंग में चार लोग थे जिसमें से मैं एक था। लगभग तीन चार साल बाद मैंने दोबारा निर्माता प्रकाश झा की वेबसीरीज फिल्म आश्रम 3 के लिए आडिशन दिया एक हफ्ते बाद मुझे पता चला कि मैं सिलेक्ट हो गया हूं मुझे लगा कि फिल्म गंगाजल जैसा छोटा सा किरदार होगा लेकिन जब मैं सेट पर पहुंचा तो वैनिटी वैन में मेरा नाम लिखा था तो मुझे से आभास हुआ कि किरदार अच्छा है टाइम अच्छा चल रहा था तो कॉन्फिडेंस लेवल और भी अच्छा था मैंने पूरा एफर्ट लगाकर अपने इस पूरे परफॉर्मेंस में अपनी पूरी जान लगा दी सभी को मेरा काम बहुत अच्छा लगा प्रकाश झा सर ने भी मेरे काम की तारीफ की और मेरा आत्मविश्वास चौक ना हो गया जब वेब सीरीज रिलीज हुई तो सब कुछ बदल चुका था जो कास्टिंग डायरेक्टर मेरे फोन नहीं उठाते थे मेरे मैसेज का रिप्लाई नहीं करते थे उनके कॉल और मैसेज बधाई देने के लिए आने लगे मैं हैरान था कि अचानक ऐसा क्या हो गया आश्रम 3 से मुझे खास पहचान मिली उसकी वजह से मुझे बड़े-बड़े कार्यक्रमो और शो में बतौर मुख्य अतिथि बुलाया जाने लगा और खूब सारा मान सम्मान मिलने लगा
सवाल – आप एक एक्टर है अभिनय से आपका गहरा प्रेम है लेकिन फिर आप एक एडवोकेट कैसे बन गए? मायानगरी से हाईकोर्ट कैसे पहुंच गए?
जबाब -दरअसल मेरी मां श्री गीता राजपूत जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्ता है । कहते हैं कि एक मां से बेहतर अपने बच्चे को और कोई नहीं समझ सकता। तो जब मैं मुंबई में स्ट्रगल कर रहा था तो तीज त्यौहार में जबलपुर घर आना होता था तो मेरी मां ने कहा था कि अगर मैं फिल्म लाइन में सफल नहीं हुआ तो मेरे पास करियर एक और रास्ता खुला रहेगा इसलिए मैंने वकालत भी कर ली।
सवाल -अभी आपके आने वाली फिल्में कौन-कौन सी हैं?
जबाब – मेरी आने वाली फिल्म हरियाणवी वेब सीरीज और अभी तो पार्टी शुरू हुई है रिलीज होने वाली है इसके अलावा हिंदी हॉरर फिल्म सिरहन , गुदना , क्यों रंगे हो प्यार के रंग में, आने वाली है
सवाल – आपके परिवार में कौन-कौन है? आपने बताया कि आपके माता एक एडवोकेट हैं तो आपके पिता क्या करते हैं?
जबाब – मेरे पिता श्री राजकुमार सिंह राजपूत जबलपुर मध्य प्रदेश में कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करते हैं मां श्रीमती गीता राजपूत जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्ता है। मेरा छोटा भाई नवदीप सिंह राजपूत और एक छोटी बहन निधि सिंह राजपूत है। मेरा विवाह जबलपुर के कटिंग का निवासी हरि सिंह राजपूत की सुपुत्री श्रीमती स्वाति राजपूत से हुआ जो जबलपुर की श्री राम कॉलेज में कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर हैं मेरे दो बच्चे हैं एक बेटी आरना और बेटा कृशिव है।
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