दमोह के सिनेमाघर कब बने
मध्यप्रदेश दमोह जिले के सिनेमाघरों का इतिहास पुराना है दमोह शहर के वासी मनोरंजन के शौकीन हमेशा से ही रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं दमोह जिले के सिनेमाघर का इतिहास कितना पुराना है आइए हम आपको बताते है दमोह का सबसे पहला सिनेमाघर मोहन टॉकीज है इस सिनेमा का निर्माण सन् 1940 में हुआ था जो शहर के मुख्य मार्ग पर पुराना बाजार में बना था इस सिनेमाघर को प्रभु दयाल नारायण जायसवाल ने बनवाया था। मोहन टॉकीज के मैनेजर लक्ष्मी सहाय वर्मा थे। दूसरा सिनेमाघर वर्ष 1947 में बना जगदीश टॉकीज है इस सिनेमा को जगदीश नारायण जायसवाल ने बनवाया था और अपने नाम पर ही सिनेमाघर का नाम रखा । जगदीश टॉकीज की खास बात यह है कि उस पुराने दौर में भी मुंबई की तर्ज पर फिल्म रिलीज के दिन या उसके बाद दो तीन दिनों के अंदर ही फिल्म लग जाया करतीं थीं दमोह का तीसरा सिनेमा बहराम टॉकीज है इस सिनेमाघर की स्थापना 14 सितंबर 1968 को की गई थी इस सिनेमाघर का नाम इसके मालिक एडल जी बहराम के नाम पर रखा गया और बहराम टॉकीज की ओपनिंग रामानंद सागर की फिल्म आंखें से हुई। चालीस के दशक से बॉलीवुड फिल्मों का बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर दर्शकों तक पहुंचाने और हिन्दी सिनेमा जगत के निर्माताओं को लाभ कमाने में दमोह के इन सिनेमाघरों का विशेष महत्व रहा है।
दमोह सिनेमाघरों में बर्मन परिवार की सेवाएं –
दमोह नगर के प्रसिद्ध इन तीनों सिनेमाघर मोहन टॉकीज, जगदीश टॉकीज और बहराम टॉकीज में अपनी बेहतरीन सेवाओं के लिए बर्मन परिवार पहचाना जाता है दुर्गा प्रसाद बर्मन, स्व.गोकुल प्रसाद बर्मन, स्व.अनंतराम बर्मन,श्री माधव बर्मन, श्री त्रिलोक बर्मन श्री महेश बर्मन और प्रदीप बर्मन प्रमुख नाम है। श्री दुर्गा प्रसाद बर्मन (66 वर्ष) ने 27 साल अकाउंटेंट के पद पर तीनों सिनेमाघरों में अपनी सेवाएं दी इतना ही नहीं बुकिंग क्लर्क और फिल्म एक्सपोर्ट का काम भी किया वह महाराष्ट्र के अकोला, अमरावती से फिल्म लेकर आते थे तब अगले दिन सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शित हुआ करती थी। इतना ही नहीं पूरे शहर में फिल्म के ऐलान के लिए माइक सेट पर अपनी आवाज भी दिया करते थे और फिल्मो के पोस्टर पर स्पेशल पेंटिंग कर उसे आकर्षित भी बनाया करते थे। साल 1940 में जब जगदीश टॉकीज की ओपनिंग हुई तों स्व. श्री अनंतराम बर्मन अपनी साइकिल पर पोस्टर लेकर फिल्म का प्रचार प्रसार करने का काम किया करते थे। बाद में बुकिंग क्लर्क और अन्य सेवाएं भी दी। बहराम टाकीज जब डिजीटल हुई तो पहली फिल्म सलमान खान की बाडीगार्ड लगाई गई इस फिल्म का वितरण सलमान खान के पिता सलीम खान साहब कर रहे थे सिनेमा मैनेजर बसंत खरे और दुर्गा प्रसाद बर्मन फिल्म का पहला प्रदर्शन दमोह लेकर आये थे। दुर्गा प्रसाद बर्मन के पुत्र प्रभात बर्मन एक स्क्रीन प्ले राइटर है वह स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य भी हैं।
मध्यप्रदेश के सिनेमा मशीन विशेषज्ञ बर्मन परिवार –
दमोह के सिनेमाघरों में स्व.श्री गोकुल प्रसाद बर्मन चालीस के दशक में मशीनों को ऑपरेट किया करते थे वह सिनेमा मशीनो के कुशल विशेषज्ञ थे सिनेमाघरों की मशीनो से फिल्मों का उम्दा प्रदर्शन और उनके सुधारक के रूप में पूरे मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध थे उनकी यह प्रतिभा उनके तीनों पुत्रों श्री त्रिलोक बर्मन,श्री और महेश बर्मन में अनुवांशिक रूप से विरासत में मिली। त्रिलोक बर्मन सिनेमा मशीनो के बहुत ही जाने माने विशेषज्ञ हैं मध्य प्रदेश के सिनेमाघरों में जिस मशीन को अन्य कोई कारीगर सुधार नही पाता था ऐसे में त्रिलोक बर्मन को विशेष रूप से सिनेमा मशीन को सुधारने बुलाया जाता था हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि उनका यह पेशा था वह भोपाल में शासकीय रेशम विभाग में पदस्थ थे फिर भी अपना बहुमूल्य योगदान सिनेमा को देने कभी पीछे नहीं हटते थे। माधव बर्मन जगदीश टॉकीज दमोह में बतौर मशीन आपरेटर काम किया तो महेश बर्मन ने मोहन टॉकीज में मशीन आपरेटर के रूप में सेवा दी अविस्मरणीय योगदान दिया।
बर्मन परिवार का पुराना इतिहास
बर्मन परिवार का इतिहास बहुत पुराना है बर्मन परिवार मराठा वंशज हैं 18 वीं शताब्दी में पेशवा बाजीराव के साथ मराठाओं की सेना में महाराष्ट्र से दमोह मध्यप्रदेश आयें थे और यही बस गए । बर्मन परिवार के पहले वंशज श्री मुकुंद राव है जो मराठा सेना में महाराष्ट्र से दमोह मध्यप्रदेश आये थे दयाशंकर बर्मन सुबोध (68)बताते हैं कि उनके वंशज महाराष्ट्र से दमोह आ गए थे उस दौर में दमोह जिला था और सागर एक छोटी तहसील थी और उनके पूर्वज मुकुंद राव के बेटे श्री घुरके राव ने यहां उस दौर में ट्रांसपोर्ट बिजनेस शुरू किया था उस समय घोड़ा गाड़ी और बैलगाड़ी से माल का आवागमन होता था अंग्रेज अफसर के ऊपर घोड़ा गाड़ी का पहिया चढ़ गया था और उसकी मौत हो गई थी जिसके अपराध है घुरके राव के एक बेटे को कालापानी की सजा हो गई थी। और दूसरे बेटे बिहारी लाल ने बर्मन लड़की से विवाह कर लिया उनके तीन बेटे हुए कालूराम बर्मन, बाबूलाल बर्मन, और गनेश प्रसाद बर्मन। कालूराम बर्मन के बेटे गोकुल प्रसाद बर्मन जो सिनेमा में मशीन आपरेटर के नाम से मशहूर हुए। गणेश प्रसाद बर्मन दमोह के सबसे बड़े वकील स्व. झुन्नी लाल वर्मा के यहां मुंशी थे । गणेश प्रसाद बर्मन के बेटे श्री दुर्गा प्रसाद बर्मन सिनेमा में अकाउंट संभालने लगे। झुन्नी लाल वर्मा जी शहर के जाने-माने दिग्गज में से थे उनके बेटे की गहरी मित्रता फिल्म बॉबी से मशहूर लेखक विट्ठल भाई पटेल से थी। वर्मा जी के जरिए अभिनेता राज कपूर का जब सागर आगमन हुआ तों दुर्गा प्रसाद बर्मन ने उनसे मुलाकात की । हालांकि दयाशंकर बर्मन (68) का भी फिल्म जगत से जुड़ाव है वह एक पटकथा लेखक हैं जिन्होंने फिल्म विकास निगम भोपाल द्वारा फिल्म लेखन की विधा अर्जित की है उनकी अनेक किताबें प्रकाशित है वह मध्य प्रदेश विधुत विभाग के आडिटर पोस्ट से रिटायर्ड है दयाशंकर बर्मन फिल्म राइटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य भी हैं उनके छोटे बेटे अभिनव बर्मन उधान विभाग अधिकारी हैं।
सिनेमाघर में दर्शको की हर एक पसंदीदा फिल्म में चार खेल दिखाने वाले और सिनेमा के पर्दे के पीछे रहकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाला बर्मन परिवार
दमोह के सिनेमाघरों का इतिहास यह लेख पूर्णतः विश्वनीय है यह बालीवुड यात्रा के शोध पर आधारित है और श्री दयाशंकर बर्मन, दुर्गा प्रसाद बर्मन,माधव बर्मन द्वारा साक्षात्कार पर आधारित है