फ़िल्म निर्देशक माही दुबे: भारतीय सिनेमा का उभरता सितारा

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फ़िल्म निर्देशक माही दुबे: भारतीय सिनेमा का उभरता सितारा

Film Nirdeshak Dubey Mahi Bhartiya cinema Ka Ubharta Sitara
Film Nirdeshak Dubey Mahi Bhartiya cinema Ka Ubharta Sitara

 

माही दुबे, एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता और एडिटर, भारतीय सिनेमा में अपनी विशिष्ट पहचान बना रहे हैं। 22 दिसंबर 2002 को जन्मे माही ने कम उम्र में ही फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
माही न केवल एक कुशल फिल्म निर्देशक हैं, बल्कि फिल्म एडिटिंग और प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उनका प्रोडक्शन हाउस ‘एम डी आर्ट्स प्रोडक्शन’ कई यूट्यूब चैनलों का प्रबंधन करता है, डॉक्यूमेंट्री, विज्ञापन फिल्में, शॉर्ट फिल्म्स के निर्माण में भी अग्रणी है।

*महाकौशल फिल्म फेस्टिवल में ‘इट्स नॉट जस्ट ए पेंटिंग’ – बेस्ट सिनेमैटोग्राफी में पुरस्कृत।*

माही की लघु फिल्म ‘इट्स नॉट जस्ट ए पेंटिंग’ ने महाकौशल फिल्म फेस्टिवल में ‘सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी’ का पुरस्कार जीता। यह फिल्म उनकी सिनेमाई दृष्टि और तकनीकी कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसका फिल्मांकन ग्वालियर, मध्य प्रदेश के दतिया के एड्रिक तोपो, निर्देशन बिहार के नीतीश कुमार, म्यूजिक उत्कल के भरत कुमार ओर अभिनय अभिराज सक्सेना, वैशाली सक्सेना, शिवा ने किया।

 

Film Nirdeshak Dubey Mahi Bhartiya cinema Ka Ubharta Sitara

 

संयुक्त परिवार है फिल्म निर्देशक माही की शक्ति

फिल्म निर्देशक माही दुबे ने बताया कि उनकी सफलता का मूल कारण सनातन हिंदू संस्कृति और संयुक्त परिवार की परंपरा है। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा, “मैं सौभाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म सनातन संस्कारों से पोषित एक संयुक्त परिवार में हुआ, जहां मुझे दादा-दादी, तीन बुआएं, तीन चाचा-चाचियां और छोटे भाई बहनों से भरा पूरा परिवार मिला। चाहे फिल्म बनाना हो या कोई भी निजी काम, हम सब मिलकर उसे आसानी से पूरा कर लेते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।”

माही ने आगे कहा, “ईश्वर तुल्य माता-पिता का साथ मेरा सबसे बड़ा सौभाग्य है। उन्होंने कभी मेरे सपनों को दबाने की कोशिश नहीं की, बल्कि जो मेरा मन चाहता था, मुझे उसे करने की पूरी स्वतंत्रता दी। यही स्वतंत्रता और परिवार का साथ मेरी सफलता की नींव है।”

 

 

 

 

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*फिल्म निर्माण के प्रति माही की सोच:*

माही दुबे का मानना है कि फिल्म निर्देशन केवल तकनीक का ज्ञान नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति एक अपनी जिम्मेदारी निभाने का कार्य है। वह कहते हैं, “फिल्म बनाना एक कल्पनाशीलता और नेतृत्व का कार्य है। आपको अपने आसपास की हर चीज को गहराई से देखना और समझना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप सुबह किसी ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं, तो सोचें कि इस दृश्य को फिल्म में कैसे प्रस्तुत करेंगे। कैमरा एंगल, डायलॉग और शॉट्स की कल्पना करें। आखिर फिल्म निर्देशक शिव का कप्तान होता है उसके अनुभव के आधार पर टीम के बाकी लोग कार्य करते हैं तो पूरी टीम के साथ समन्वय बिठाना और अभ्यास करना ही निर्देशन के कौशल को निखारता है। जैसे-जैसे हम अपने जीवन में अनुभव प्राप्त करते हैं उसका असर अपनी फिल्मों में पड़ता है ओर निर्देशन क्षमता बढ़ती है, फिल्म के छात्र होते हुए हमें बोलना कम सुनना ज्यादा चाहिए, दूसरों के अनुभवों से और उनसे बात करके भी हम सीखते हैं।’
माही का दृष्टिकोण यह है कि एक अच्छा निर्देशक वही बनता है जो खुद से सीखने का साहस करता है। उन्होंने युवाओं को सलाह दी, “फिल्म स्कूल जाना ज़रूरी नहीं है, आप यूट्यूब, ऑनलाइन कोर्स और प्रैक्टिकल अनुभव के जरिए भी फिल्म निर्माण सीख सकते हैं या किसी अनुभवी निर्देशक अंडर में रहकर लेकिन अगर आप संस्थानों में जाना चाहते हैं, तो FTII, SRFTII, DLCSUPVA, सुभाष घई फिल्म इंस्टीट्यूट, या अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में ट्राय करें।

 

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मुंबई में मधुर भंडारकर के साथ माही दुबे

 

*भारतीय और वैश्विक सिनेमा के अध्ययन शुरू करना चाहिये:*

माही दुबे का कहना है कि जब सिनेमा का जन्म हुआ तो वह विशुद्ध रूप से मनोरंजन के लिए था मगर समय के साथ सिनेमा दो वर्गों में विभाजित हुआ एक कमर्शियल दूसरा आर्ट हाउस। हमें सिनेमा की गहरी समझ विकसित करनी है, तो इसकी शुरुआत भारतीय सिनेमा के पायनियर डायरेक्टर्स जैसे ‘सत्यजीत राय’, ‘दादा साहेब फाल्के’, ‘तपन सिन्हा’, ‘श्याम बेनेगल’, ‘चेतन आनंद’ जैसे दिग्गज निर्देशकों की फिल्मों से करनी चाहिए। इनके अलावा, गुरुदत्त, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, राज कपूर और यश चोपड़ा जैसे निर्देशकों की रचनाओं का अध्ययन करें।” उन्होंने कहा ” एक बार यह सिनेमा समझ लिया फिर हर वर्ष की एक फिल्म आर्ट हाउस और कमर्शियल हित को देखें और समय के साथ चले एक बार भारत पूरा हो जाए, तो विश्व सिनेमा का दर्शन किया जा सकता है, लुमियर ब्रदर्स से लेकर न्यू हॉलीवुड एरा तक के हर बड़े फिल्म मूवमेंट को समझना चाहिए जिसमे मुख्य रूप से सोवियत मोंटाज, जर्मन एक्सप्रेशन, ईरानी सिनेमा, इटालियन नव यथार्थवादी सिनेमा, मिस्र का सिनेमा, ‘दोगमे95’, नोवो, आदि के साथ कांस विजेता फिल्मों तक का अध्ययन करना चाहिए। हर युग के सिनेमा की गहराई और उसकी शैली को समझना बेहद जरूरी है।”

*माही का फ़िल्मी सफर: हिंदू संस्कृति और रामायण से प्रेरणा*

माही दुबे ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत महज 14 साल की उम्र में की। माही ने बताया कि बचपन मे वे रामानंद सागर की रामायण देखा करते थे उसमें हनुमान जी बने दारा सिंह जी से प्रेरित होकर उन्होंने अपने छोटे भाई को हनुमान जी बनाया और हनुमत भरे उड़ान गाने पर फिल्म बनाकर यूट्यूब पर डाली उससे उन्हें गुना शहर एवं स्कूल में प्रोत्साहन मिला ओर यहां से फिल्म निर्माण की यात्रा शुरू हुई।”

16 की उम्र में शार्ट फिल्म ‘आर्टिकल 21’ जिसे 7 पुरस्कार मिले, उनकी रचनाओं में फीचर फिल्म ‘टिकट एक संघर्ष’ भी शामिल है।

*माही का बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफर*

मध्यप्रदेश के गुना जिले के माही दुबे न केवल भारतीय सिनेमा में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने हॉलीवुड की फिल्मों जैसे ‘वाइल्ड इंडियन,’ ‘अबे,’ ‘टेन मेन’, ‘ ‘हॉलीवुड लैंडरोमट,’ और ‘अल्टीमेट इनवेजन’ में एडिटिंग का कार्य किया। अमेरिका की ‘साउंड ट्री पिक्चर्स’ के साथ काम करके उन्होंने इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स सीखे।

 

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फिल्म निर्देशक माही दुबे

Film Nirdeshak Dubey Mahi Bhartiya cinema Ka Ubharta Sitara

 

*वामपंथी प्रोपगेंडा सिनेमा के खिलाफ माही का दृष्टिकोण*

माही दुबे का कहना है ”कि 1940-50 के दशक के बाद जब बामी आक्रांताओं की नजर भारतीय सिनेमा पर पढ़ने लगी ओर उन्होंने षड्यंत्र किये ओर हमारा सांस्कृतिक मूल्य वाला भारतीय सिनेमा बॉलीवुड बन गया―वामपंथी सोच और व्यावसायिकता का शिकार हो गया। उनका कहना है, “हमारी फिल्मों में भारतीय संस्कृति और भारतीयता का चित्रण होना चाहिए। ऐसी फिल्में बननी चाहिए जो टूटे हुए समाज को जोड़ें और भारतीय मूल्यों को संजोएं।”

 

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महाकौशल फिल्म फेस्टिवल में माहीं दुबे

Film Nirdeshak Dubey Mahi Bhartiya cinema Ka Ubharta Sitara

 

*’महाकौशल फिल्म फेस्टिवल’ भारतीय मूल्य वाले सिनेमा के प्रोडक्शन में अग्रणी..*

माही ने महाकौशल फिल्म फेस्टिवल एवं महाकौशल फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी का आभार व्यक्त करते हुए कहा की महाकौशल फिल्म फेस्टिवल एक राष्ट्रीय विचार का फिल्म फेस्टिवल है जिसका फिल्मों के माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार एवं हिंदू संस्कृति के अभ्युदय में अग्रणीय भूमिका है, भविष्य में भी यह फेस्टिवल निर्णायक भूमिका अदा करेगा इस वर्ष भी महाकौशल फिल्म फेस्टिवल में संपूर्ण मध्य प्रदेश से डेढ़ सौ से ज्यादा एंट्रीज प्राप्त हुई सभी फिल्में भारतीय सनातन दर्शन को चरितार्थ करती थी, उन्होंने कहा, ” मैं फेस्टिवल में ऐसी फिल्मों का दर्शन बना जिसमें भारतीय मूल थे अब समय आ गया है कि हमारी फिल्मों में ‘भारत माता की जय’ हो, हमारे संस्कार हों, और हम ऐसी फिल्मों के ही दर्शक बने।

*युवाओं के लिए संदेश:*

माही दुबे का संदेश स्पष्ट है: “फिल्म निर्माण एक साधना है। इसे आत्मनिर्भरता और दृढ़ संकल्प से सीखें। फिल्में केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि समाज को जोड़ने और बदलने का एक सशक्त जरिया हैं।”

*उनकी फिल्म ‘टिकट: एक संघर्ष’ का आधिकारिक ट्रेलर नीचे देखा जा सकता है:*

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